ऐसी कौन सी चीज है जिन्हें तर्क और विज्ञान से समझना संभव नहीं है?
- एक के बाद एक तीन तीन बड़े पात्र जिनमे सैंकड़ो लीटर दूध भरा हुआ था उनमे रखा दूध फट गया!(नष्ट हो गया)
- तिरुपति जैसे विश्व के सबसे बड़े देवस्थान में उस दिन मात्र 5 लीटर दूध से बस कुछ ही मिनटों में प्रभु श्रीमन्नारायण का वो अभिषेक सम्पन्न हो गया जो डेढ़-दो घंटे चलता है!
- पुजारियों द्वारा कोई गलती नही हुई, पूजा से संबंधित अधिकारियों द्वारा कोई समस्या नही उत्पन्न हुई और ना ही दूध रखने-लाने-लेजाने में ही कोई त्रुटि हुई!
मित्रों आइए आज प्रभु की एक अनोखी लीला के बारे में जाने जो इसी घोर पापयुक्त कलियुग में भी अपने भक्तों के प्रति भगवान के स्नेह का साक्षात उदाहरण है।
वो सत्तर के दशक का अंत था जब तिरुपति देवस्थान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में श्री पी.वी.आर.के प्रसाद पदस्थ थे, जो कालांतर में भारत देश के प्रधानमंत्री श्री नरसिंह राव के मुख्य सचिव भी रहे।
आप मे से जो मित्र नही जानते उनके लिए लिख रहा हूँ कि तिरुपति मंदिर में सबसे प्रमुख प्रभु दर्शन का अवसर होता है "शुक्रवार अभिषेक"।
प्रति शुक्रवार के दिन प्रातः काल मे प्रभु का दूध-फलो के रस-पवित्र नदियों के जल द्वारा अभिषेक होता है। इस समय भगवान को केवल एक धोती और एक उपवस्त्र धारण कराया जाता है और भक्तो के लिए ये स्वर्णिम अवसर होता है जब बिना किसी आभूषण के प्रभु के मूल स्वरूप के दर्शन वे कर सकते है पूरे 2 घंटे तक जब तक अभिषेक चलता है।
तिरुपति देवस्थान का वार्षिक मुख्य उत्सव "ब्रह्मोत्सव" जिसमे करोड़ो भक्त देश-विदेश से भगवान के दर्शनों के लिए आते है, उस ब्रह्मोत्सव के शुक्रवार के दिन की ये घटना है…
लगभग 2 सालो से कार्यकारी अधिकारी श्री प्रसाद और उनकी धर्मपत्नी प्रत्येक शुक्रवार के दिन अभिषेक पूजा में भाग लेते और मन ही मन विचार करते कि अगले शुक्रवार को अपनी तरफ से भी 5 लीटर दूध अभिषेक सेवा में अर्पित करना है, क्योकि भक्त अपनी श्रद्धानुसार अभिषेक हेतु दूध मंदिर प्रशासन में अर्पित करते ही थे
किन्तु अगले शुक्रवार अगले शुक्रवार करते करते दो साल हो गए और हमेशा कुछ ना कुछ घटनाओं-कार्यो के कारण वो पाँच लीटर दूध प्रसाद साहब और उनकी धर्मपत्नी अर्पित करने में असफल ही रहे।
अब ब्रह्मोत्सव के अवसर पर एक रात्रि पहले से ही श्री प्रसाद की धर्मपत्नी ने 5 लीटर दूध अलग से निकालकर मंदिर के पास में बने अपने गेस्टहाउस के फ्रीज़ में रख दिया, की कल प्रातःकाल अभिषेक में जाने से पहले इसे लेते जाएंगे।
इधर सुबह के 4 बजे और अभिषेक पूजन आरंभ हो गया..
सभी भक्त टकटकी लगाए प्रभु को निहारने लगे और अर्चकों ने वैदिक मंत्रों का उच्चारण आरम्भ कर दिया। पहले जल से भगवान को स्नान कराया गया और उसके बाद बड़े से एक पात्र में जिसमे 100 लीटर के करीब दूध था वो भगवान के समक्ष अभिषेक के लिए लाया गया किन्तु…
दूर से दर्शन कर रहे भक्तो ने देखा कि उन अर्चकों ने बड़ी चिंता से दूध का पात्र देखा और फिर आपस मे कुछ बात करके उस पात्र को बाहर ले गए।
कुछ ही देर में फिर से एक नया पात्र जिसमे भी लगभग 100 लीटर दूध है वो भीतर लाया गया अभिषेक हेतु। किन्तु फिर वही अर्चकों ने पहले दूध वाले पात्र को देखा और फिर तनावयुक्त मुखाकृति बनाकर आपस मे कुछ बात करके उस पात्र को भी बाहर भिजवा दिया।
तीसरी बार भी दूध से भरा पात्र आया और घोर आश्चर्य की तीसरी बार भी यही का यही दृश्य उपस्थित हुआ और पात्र बाहर ली जाया गया
फिर चौथी बार एक छोटी सी चांदी की बाल्टी में थोड़ा सा दूध आया और सभी अर्चकों ने मात्र 4–5 मिनटों में दूध द्वारा अभिषेक सम्पन्न करवा दिया जिसके लिए 2 घंटे लगते थे और सहस्त्रों लीटर दूध अर्पित किया जाता था।
बाहर श्रद्धालुओं के साथ दर्शन कर रहे मुख्य अधिकारी श्री प्रसाद को ये सब अव्यवस्था देखकर बहुत क्रोध आया और पूजन के पश्चात वे उन भगवान के अर्चकों के पाए वस्तुस्थिति जानने जा पहुँचे।
भगवान के अर्चकों ने बताया..
- तिरुपति के डेयरी से पूरी शुद्ध अवस्था मे दूध को सावधानीपूर्वक यहाँ मंदिर में अभिषेक के लिए लाया गया, किन्तु वो दूध भगवान के सामने आते ही खराब हो गया (फट गया)
- इसके बाद हमने तुरंत रिज़र्व में रखा दूध डेयरी से बुलवाया और वो भी पूरी निगरानी में सावधानीपूर्वक यहाँ मंदिर में लाया गया किन्तु वो दूध भी नष्ट हो गया भगवान के सामने लाते ही।
- ऐसा तीसरी बार भी हुआ और इसके बाद डेयरी में दूध समाप्त हो गया। पूरे तिरुपति में प्रातःकाल 4 बजे कोई ऐसा स्थान नही था जहाँ से हम इतनी बड़ी मात्रा में दूध प्राप्त कर पाते इसी कारण से मात्र पाँच मिनट में थोड़े से प्राप्त हुए दूध के द्वारा अभिषेक सम्पन्न किया।
क्रोध से उद्वेलित श्री प्रसाद ने उसी समय डेयरी सुपरिन्टेन्डेन्ट को तत्काल प्रभाव से सेवामुक्त करने का आदेश जारी कर दिया।
इतने में ही उनकी धर्मपत्नी दौड़ी दौड़ी उनके पास आयी, आँखों मे आँसू लिए मानो वणिक ने अपनी सारी पूंजी गवाँ दी हो, ऐसी दशा में प्रसाद से बोली:
"हम कैसे अभागे है! आज के अभिषेक के लिए तो मैंने 5 लीटर दूध निकाल के रखा था पर जल्दी जल्दी में यहाँ लाना भूल गयी! ना जाने हमसे ऐसा कौनसा अपराध हुआ है जो प्रभु हमारी भेंट स्वीकार नही कर रहे!"
इतने में ही उन अर्चकों में से एक बोल पड़े:
"बहन ये दूध जिससे हम अभिषेक कर पाए ये आपके ही गेस्टहाउस में रखा हुआ 5 लीटर दूध है। जब डेयरी का सारा दूध समाप्त हो गया और अन्य कही कोई व्यवस्था नही होती दिखी तभी हमे स्मरण हो आया कि कल आपने भी डेयरी से कुछ अतिरिक्त दूध लिया था। बस हमने आपलोगो से पूछे बिना एक सेवादार गेस्टहाउस भिजवाया और आपके फ्रीज़ से यह दूध निकलवा कर यहाँ उससे प्रभु का अभिषेक सम्पन्न किया।"
श्री प्रसाद और उनकी धर्मपत्नी के नेत्रो से प्रेमाश्रु बहने लगे, मानो एक स्वीकारोक्ति प्राप्त हो गयी भगवान के द्वारा की "हाँ ठीक है! तुम्हे मैंने अपना लिया है। आज से तुम मेरे हुए।"
भारत के सबसे प्रसिद्ध-विराट-सर्वसुविधायुक्त मंदिर में तीन तीन बार दूध का नष्ट हो जाना और उसी डेयरी से लिये गए एक भक्त के दूध का पूर्णतः शुद्ध रहना…
कौनसा विज्ञान और कैसा तर्क इसमे स्पष्टीकरण दे सकने में समर्थ है!
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